Mukul Dev जो हर किरदार में जान डाल देते थे, अब हमारे बीच नहीं रहे

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By Reyaz Haque

Mukul Dev जो आज हमारे बीच नहीं रहे , उनके चले जाने से शायद यही ख्याल मन में आता है की सिनेमा सिर्फ कैमरा, लाइट्स और एक्टिंग का खेल नहीं होता, ये जज़्बातों, संघर्षों और सपनों की कहानी होती है। ऐसी ही एक कहानी थे Mukul Dev , जिन्हें भले ही बड़े सितारों की तरह वो शुह्रत और नाम नहीं मिला, लेकिन उनके अभिनय ने हमेशा स्क्रीन पर दिल जीता।

शुक्रवार का दिन जब बॉलीवुड अपनी सारी फ़िल्में रिलीज़ करती हैं , मुकुल देव की भी सारी फ़िल्में उसी शुक्रवार को रिलीज़ होइ होगी, लेकिन अफ़सोस 23 मई शुक्रवार 2025 को ही एक ऐसा सितारा हमारे बीच से चला गया जो अब कभी लौट के नहीं आने वाला है, जैसे ही खबर आई कि मुकुल देव का निधन हो गया है, तो जैसे बॉलीवुड और टेलीविज़न की दुनिया में एक सन्नाटा पसर गया। 54 साल की उम्र में, जिंदगी से अचानक चले जाना आसान नहीं होता, ना उस इंसान के लिए, ना ही उनके चाहने वालों के लिए।

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Mukul Dev With Dilip Kumar

Mukul Dev एक अभिनेता, जो कभी पायलट बनने निकला था

दिल्ली में एक पंजाबी फॅमिली में जन्मे मुकुल देव ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि वो एक दिन फिल्मों की दुनिया में नाम कमाएंगे। उनके करियर की शुरुआत तो एक पायलट के रूप में हुई थी। लेकिन उनकी रुचि शुरू से ही कला की तरफ था, (हालाकिं वो एक  वो एक लाइसेंस प्राप्त पायलट थे) लेकिन किस्मत उन्हें मुंबई की गलियों में ले आई, जहां उन्होंने एक नए सपने को जीना शुरू किया, और वो सपना था अभिनय का।

एक अदाकार की शुरुआत

चूँकि Mukul Dev बचपन ही से अदाकारी के शौकीन थे, तो सेंट कोलंबा स्कूल से पढाई के दिनों में ही कक्षा 8 में दूरदर्शन के एक डांस शो में माइकल जैक्सन की नकल करके अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। शुरुआती सपना पायलट बनने का था, जिसके लिए उन्होंने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान अकादमी से प्रशिक्षण लिया और एक दशक तक कमर्शियल पायलट के रूप में काम भी किया। लेकिन अभिनय का जुनून उन्हें 1996 में टीवी धारावाहिक “मुमकिन” और फिल्म “दस्तक” तक ले आया, जहाँ उन्होंने एसीपी रोहित मल्होत्रा का किरदार निभाया। 

धारावाहिक “मुमकिन” से उन्होंने अभिनय की शुरुआत जहाँ उन्होंने “विजय पांडे” का किरदार निभाया। और “दस्तक” में एसीपी रोहित मल्होत्रा की भूमिका, और टीवी जगत में उनकी पहचान “फियर फैक्टर इंडिया” के पहले सीज़न की होस्टिंग और धारावाहिक “घरवाली उपरवाली” में “रवि” के रोल से बनी। 

mukul dev


अभिनय के पीछे का संघर्ष

यह हकीकत है की पहली फिल्म्स “दस्तक” ने उन्हें एक पहचान बॉलीवुड में दी, लेकिन उस दौर में जब स्टार किड्स और बड़े नाम इंडस्ट्री पर हावी थे, मुकुल को हर किरदार के लिए खुद को साबित करना पड़ा।

उनका चेहरा जाना-पहचाना था, लेकिन किस्मत ने उन्हें शायद मुख्यधारा का हीरो बनने का मौका नहीं दिया। फिर भी, उन्होंने कभी हार नहीं मानी। वो हर रोल को जीते रहे, कभी पुलिसवाले के किरदार में, कभी विलेन के रूप में, तो कभी कॉमेडी शो में एक मज़ेदार अंदाज़ में।

Mukul Dev in news

Mukul Dev की टेलीविज़न की दुनिया में एक खास जगह

अगर आप 1990 और 2000 की शुरुआत के टीवी शोज़ की बात करें, तो उस दौर में मुकुल रॉय टीवी की दुन्या में एक जाने माने चेहरा थे, और उनको भूलना मुश्किल है. ‘क्या हादसा क्या हकीकत‘, ‘श्श्श… फिर कोई है’ जैसे शोज़ में उन्होंने अपने अभिनय की गहराई दिखाई। उनका स्क्रीन प्रेज़ेंस कुछ ऐसा था कि छोटे रोल भी यादगार बन जाते थे।

Mukul Dev का फिल्मी सफर: विलेन से लेकर यादगार सहायक भूमिकाएँ

मुकुल देव ने अपने करियर में 30 से अधिक फिल्मों और कई टेलीविज़न प्रोजेक्ट्स में काम किया। उनकी ब्रेकथ्रू फिल्म 2011 की “यमला पगला दीवाना” रही, जिसमें “गुरमीत सिंह बरार” के रोल के लिए उन्हें *7वाँ अमरीश पुरी अवार्ड* मिला। 2012 में “सन ऑफ सरदार” में “टोनी सिंह संधू” का किरदार उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई, जहाँ उनकी केमिस्ट्री संजय दत्त और अजय देवगन के साथ दर्शकों को भाई। इसके अलावा, आर… राजकुमार (2013) में “क़मर अली” और “जय हो” (2014) में “श्रीकांत पाटिल” जैसे रोल्स ने उनकी बहुमुखी प्रतिभा को उजागर किया। 

दक्षिण भारतीय सिनेमा में भी उन्होंने खास जगह बनाई: तेलुगु फिल्म “अधूर्स” (2010) और कन्नड़ फिल्म “रजनी” (2009) में उनके अभिनय को सराहा गया। 

टेलीविज़न में उनकी मेहनत “घरवाली उपरवाली”, “कशिश”, और “21 सरफ़रोश: सारागढ़ी 1897” जैसे शोज़ में दिखी, जहाँ उन्होंने नकारात्मक भूमिकाओं में भी दमदार अभिनय किया। 

Mukul Dev on the sets of Jai Ho.


फिल्मी करियर और यादगार भूमिकाएँ

मुकुल देव ने बॉलीवुड में खलनायक और सहायक भूमिकाओं के माध्यम से अपनी पहचान बनाई। “सन ऑफ सरदार” (2012) में टोनी सिंह संधू का किरदार उन्हें व्यापक पहचान दिलाया। “यमला पगला दीवाना” (2011), “आर… राजकुमार” (2013), और सलमान खान की “जय हो” (2014) जैसी फिल्मों में उनके संवाद और एक्सप्रेशन दर्शकों के दिलों में छा गए। दक्षिण भारतीय सिनेमा में भी उन्होंने खास जगह बनाई. तेलुगु फिल्म “अधूर्स” (2010) और कन्नड़ फिल्म रजनी (2009) उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण हैं। 

Mukul का व्यक्तिगत जीवन: दर्द और अकेलापन

मुकुल का निजी जीवन उनके करियर से कहीं ज्यादा उथल-पुथल भरा रहा। एक तरफ उनका शंघर्ष काम और फिल्म इंडस्ट्री में था वहीँ दूसरी ओर उनका निजी जीवन में कोई ज़ियादा सुख नहीं था, 2005 में पत्नी शिल्पा देव (Shilpa Dev) से तलाक के बाद वे गहरे तनाव और डिप्रेशन में चले गए और मुंबई छोड़कर दिल्ली शिफ्ट हो गए।

फिर 2019 में जब पिता का निधन हुवा तो उन्होंने खुद को बहुत सीमित कर लिया था। और 2022 में मां के निधन के बाद वे पूरी तरह टूट गए। और माँ की मृत्यु ने उनकी मानसिक सेहत को और बिगाड़ दिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, वे अवसाद में चले गए थे, और उन्होंने अपने स्वास्थ्य की भी परवाह करना बंद कर दिया था। कोविड के बाद उनका वजन 125 किलो तक पहुँच गया, और समाज और सबसे हट कर और कट कर वे अकेलेपन में जीने लगे। दोस्त विंदु दारा सिंह के अनुसार, “वे सामाजिक संपर्क से कट गए थे और खुद को शराब और गुटखा की लत में डुबो लिया था” और यह भी कहा कि “मुकुल पिछले कुछ समय से बिल्कुल भी ठीक नहीं थे, और अपने आपको अकेला कर लिया था”। एक कलाकार जो स्क्रीन पर सबका ध्यान खींचता था, वो धीरे-धीरे खुद ही दुनिया से दूर होता गया।

Mukul dev & his brother Rahul dev with madhuri

Mukul का आखिरी पोस्ट, एक आखिरी इशारा

मुकुल देव का आखिरी इंस्टाग्राम पोस्ट भी बहुत कुछ कहता है। उन्होंने एक फ्लाइट कॉकपिट से तस्वीर शेयर की थी, जिसमें कैप्शन था:

“And if your head explodes with dark forebodings too… I’ll see you on the dark side of the moon.”

यह लाइनें शायद उनके भीतर के उस सन्नाटे की झलक थीं, जिसे वो किसी से कह नहीं पाए।

Mukul Dev with his brother Rahul Dev

Mukul Dev का परिवार और अंतिम दिन

मुकुल के परिवार में बड़े भाई राहुल देव (अभिनेता), बहन रश्मि कौशल, और बेटी सिया देव हैं। उनकी बेटी सिया, जो तलाक के बाद माँ के साथ रहती थीं, उनसे दूर हो गईं, जिसने मुकुल के अकेलेपन को और बढ़ाया। और 23 मई 2025 की रात, दिल का दौरा पड़ने के बाद उन्हें दिल्ली के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहाँ एक सप्ताह के संघर्ष के बाद उनका निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार दयानंद मुक्ति धाम में हुआ, जहाँ उनके भाई राहुल देव और करीबी दोस्त मौजूद थे।

Mukul Dev With His Doughter Sia Dev


निष्कर्ष: एक अधूरी कहानी

मुकुल देव का जीवन संघर्ष, प्रतिभा, और अकेलेपन की एक अधूरी कहानी है। उनकी मृत्यु ने एक ऐसे कलाकार को हमसे छीन लिया, जो पर्दे पर तो चमकता रहा, लेकिन पर्दे के पीछे अपने दर्द से लड़ता रहा। उनकी यादें उनके किरदारों और मुस्कुराते चेहरे के साथ हमेशा जिंदा रहेंगी।

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