जाति जनगणना : मोदी सरकार का ऐतिहासिक फैसला
जाति जनगणना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट ने 30 अप्रैल 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए आगामी जनगणना में जातीय आंकड़ों को शामिल करने की मंजूरी दे दी है। केंद्र सरकार द्वारा जाति आधारित जनगणना को मंजूरी दिए जाने के फैसले को भले ही एक ऐतिहासिक कदम बताया जा रहा हो, लेकिन इसके implement का रास्ता कांटों भरा है। जटिल तकनीकी प्रक्रियाओं से लेकर राजनीतिक और सामाजिक संवेदनशीलताओं तक – सरकार के सामने कई गंभीर चुनौतियाँ मौजूद हैं। देखा जाए तो जाति जनगणना को लागू करना सरकार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं होगा। आइये समझते हैं कि क्यों यह जनगणना सिर्फ “जाति जनगणना” नहीं, बल्कि एक बहुत बड़ा संकट केंद्र सरकार के लिये बन सकता है।
भले ही केंद्र सरकार का यह फैसला बहुत ही इतिहासिक माना जारहा हो, लेकिन इस के साथ ही कई चुनौतियां भी सरकार के सामने खड़ी हैं। आइये हम जानते हैं की सरकार के समने किया चुनौतियां हो सकती हैं।

जाति जनगणना किया है
जाति जनगणना का साफ़ और सीधा सा मतलब यह है की इस देश में रह रहे किस वर्ग और जाति के लोग कितने है, और उनकी टोटल पापुलेशन कितनी है , जाति जनगणना की बात करें तो पहले भी जाति जनगणना हो चुकी है, लेकिन उस वक़्त OBC वर्ग को जनगणना में शामिल नहीं किय जाता था , लेकिन इस बार उनकी भी जनगणना होगी.
Opposition Parties की तरफ से बार बार यह जनगणना क मुद्दा उठाया जाता रहा है, इसी लिए सरकार का फैसला आते ही Opposition ने उसे अपनी जीत के तौर पर देख रही है।
यूं तो जाती जनगणना देश में पहली बार होने जा रहा है, जिसको लेके कई सारी चुनौतियाँ और कठिनाइयां सरकार के सामने हो सकती हैं.
आइए समझते हैं कि क्यों यह जनगणना सिर्फ “जाति जनगणना” नहीं, बल्कि एक बहुत बड़ा संकट केंद्र सरकार के लिए बन सकती है!
मुख्य चुनौतियाँ:
भारत में जाति जनगणना की सबसे बड़ी बाधा जातियों की असंगठित वर्गीयकरण है, संख्या हज़ारों नहीं बल्कि लाखों में है, और भारत में जातियों के अंदर उपजातियाँ हैं।
जगह और राजियों के हिसब से इनके नाम, पहचान और उच्चारण विभिन्न होती हैं। ऐसे में डेटा एकत्र करते समय इन जातियों को वर्गीकृत करना और सटीक आंकड़े सुनिश्चित करना एक बहुत ही जटिल कार्य होगा।
जाती जाणगाण तभी सफल और कामयाब हो सकता है जब जनगणना अधिकारी घर घर जाकर के सटीक आंकड़ सरकार के सामने पेश करें, लेकिन यह देखने और सुनने में जितना आसान दिख रहा है, उतना हक़ीक़त में है नहीं, कियोंकि इस का संदेह बन रहेगा की घर घर जा कर के जानकारी जुटाने की प्रक्रिया भय और सामाजिक दबाव का शिकार हो सकती है। कियों की हमें यह याद रखना चाहिए की 2011 SECC की जो जनगणना हुवी उसमें कई राज्यों जैसे बिहार वगैरा में गलत डेटा दर्ज किया गया था.
यूं तो विपक्ष कई सालों से और खस तौर पर राहुल गांधी इस मुद्दे को लेकर के राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अस्तर पर बहुत ज़ोर शोर से अपनी आवाज़ उठा चुके हैं, और इस फैसले के आते ही तमाम सियासी पार्टियों ने इस का स्वागत किया है. लेकिन जनगणना की ज़मीनी हक़ीक़त कुछ और ही हो सकती है, कियों की जातिगत और जनगणना का Deta सीधे तौर पर आरक्षण और Reservation से जुड़ा है. और अगर जनगणना का सही आंकड़ा सरकार के पास आजाए तो बहुत सारे समुदायों को डर होगा कि जनसंख्या आधारित नीतियों से उनकी हिस्सेदारी प्रभावित हो सकती है।
जनगणना में 50% की सीमा
जहां राहुल गाँधी जति जनगणना की बात केर चुके हैं, वहीं इन्होने यह भी कहा है की 50% आरक्षण की सीमा की दीवार भी तोड़ देंगें, तो किया केंद्र की मोदी सरकार भी constitution में बदलाव कर 50% की सीमा बढ़ाएंगे, कियों की उम्मीद है की जनगणना का Deta आने के बाद रिजर्वेशन बढ़ाने की मांग ज़ोर पकड़ेगी, इस लिए की अगर किसी वर्ग की आबादी 40% से ज़ियादा है तो उसको रिजर्वेशन का फ़ायदा 27% से ज़ियादा का मिलना चाहिए, कियोंकि तमिलनाडु जैसे राज्ये पहले ही 50% से ज़ियादा का आरक्षण दे रही ही, तो किया इसकी शंका नहीं होगी की बाक़ी राज्य भी अपने वोटर्स को रिझाने के लिए इस से पीछे नहीं हटेंगे।
जाति जनगणना के बाद आगे की राह
जाती जनगणना जैसे ही पूरा होता है उसके बाद से सरकार के ऊपर दबव क बढ़ना लाज़मी ही, कियों की फिर सरकर से मांग होने लगेगी की जनगणना के हिसाब से रिजर्वेशन भी दिया जाए, और नीतियों में भी उनको शामिल किया जाए, और तो और सरकार के सामने चुनोतियाँ यह भी होंगी की सीटें तो कम हैं, लेकिन आरक्षण बढ़ाने की मांग हर समुदाय और वर्ग से आना तय है।
सरकार के सामने यह भी चुनौती होगी के इस Ai डिजिटल ज़माने में पारदर्शिता को बनाए रखे, या उनकी पार्टी तमाम पार्टियों के साथ मिल कर के राजनीतिक हित से ऊपर उठ कर ये पूरे देश में एक पैगाम दे कि जनगणना किसी को उसके हक से वंचित करने के लिए नहीं बल्की समाज में न्याय, विकास या विकास को बढ़ावा देना और देश को एक मजबूत या विकसित देश में शामिल केर ने कि तरफ एक बड़ा कदम है।
निष्कर्ष:
इतना तो ज़रूर है की मोदी सरकार का यह फैसला अपने आप में बहुत ही ऐतिहासिक आवर चैलेंजिंग है, जहाँ मोदी सरकार ने पहले भी बहुत सारे फैसलों से पुरे देश को चौंकाया है, यह भी एक बहुत बड़ा चौंकने वाला चूनौतीपूर्ण फैसला है, अब आगे यह देखना दिचस्प होगा की कैसे इसे पारदर्शिता, संवेदनशीलता और सटीकता के साथ अंजाम दिया जाएगा।